मेरी क़ोशिशे.....!
मैं क़ोशिशे करता रहता हूँ उनको पाने की, वो आज़माइशे करते रहते है मुझसे दूर जानें की।
कभी वक़्त मिले मेरे बारे में सोंचने का,
.... मेरी जान....
तो बस इतना ही याद ऱखना कोई था, जो क़ोशिश करता रहता था सिर्फ़ मुझें समझनें की।।
तेरा नशां ... !
काफ़ी अरसे बाद बात हुई उनसे, मुलाकात तो नहीं, पर उनके जज़्बात बयां हुए हमसे।
वो इश्क़ में है उनको ख़बर भी है मोह्हबत के नशें से बेख़बर भी है।।
उनको मोह्हबत में अपनी तड़प का अंदाज़ा है, मोह्हबत में उनको मेरा ,मेरा उनका तकाजा है।
वो इश्क़ करना चाहते है बड़े अदब के साथ, हम उनसे इश्क़ निभाना जानते है मोह्हबत के साथ।।
ख़ुदग़र्ज इश्क़...!
हम इश्क़ में थे वो ख़ुदग़र्ज समझ बैठें,
हम इश्क़ में थे वो ख़ुदग़र्ज समझ बैठें,
हम दर्द में थे वो बेदर्द समझ बैठें,
उसने कहा वक़्त के साथ सारे ज़ख़्म ठीक हो जाते है,
हमने भी उनसे कह दिया तुम कहते हो तो मान लेते है....
".....मेरी जान....."
मग़र मोह्हबत में लगे हर ज़ख़्म वक़्त के साथ ठीक तो नहीं पर नासूर ज़रूर हो जाते है।
गुस्ताख़ियां....!
हम नादान थे, जो उनकी गुस्ताख़ियों को माफ़ करते गए,
हम नादान थे, जो उनकी गुस्ताख़ियों को माफ़ करते गए,
और एक वो थे, जो खुद की गुस्ताख़ियों के लिए हमे साफ़ करते गए ।।
यूँ तो बहुत हुई गुस्ताख़ियां उनसे ता उम्र.....
यूँ तो बहुत हुई गुस्ताख़ियां उनसे ता उम्र,
वो गुस्ताख़ियों से सीख लेते लेते, हमे ही गुस्ताख़ बता गए।।