एक तरफ़ा मोहब्बत...!
न कभी फ़क़त मिला, न कभी वक़्त मिला, जब जब चाहा मैंने, मुझे वो तेरा सकून वाला साथ न मिला।
न कभी दिल मिला, न कभी दिलदार मिला, हरबार चाहा मैंने तुझे, मगर मुझे वो तेरा प्यार न मिला।।
आहिस्ते आहिस्ते...!
जब निकल गयी मेरे जिस्म से जीते जी रूह मेरी, तब मेरी आह सी निकल गयी।
मुझे पता भी नहीं चला कि कब चुटकियों में मेरी जान चली गयी।।
हक़ की बातें...!
हम पल - पल उनको समझते हुए समझाते रहे, वो हल पल न समझ होते गए।
हम उनके हक़ में सारे फ़ैसले लेते रहे, वो हमारा ही हक़ हमसे छीनते गए।।
ये ख़ुदग़र्ज़ियाँ...!
वो खुदगर्ज़ से हो गए अपनी की चाह में, वो दुनियाँ से बेख़बर से होते गए अपनी राह में।
मैंने पूछा, क्या अब भी है मोहब्बत हमसे ? वो शर्मिंदा से हो गए हमारी आँखों से आँखे मिला के।।