वो बेपरवाह सी लड़की मोहब्बत कर बैठी ऐसी , जिसको पता न भी था की मोहब्बत होती है कैसी |
उसको लगता था की सिर्फ मिलना, बात करना, उसका कहना मानना ही मोहब्बत है |
उसको लगता था की सिर्फ मिलना, बात करना, उसका कहना मानना ही मोहब्बत है |
जैसा वो कहता गया वैसा वो करती गयी , अपनी आज़ादी को भूलती गयी |
अपने आप को बेड़ियों में बांधती गयी , अपनी ज़िंदगी के मायने को बदलती गयी |
उसके ऊपर मोहब्बत से ज़्यादा पाबंदियां बढ़ती गयी , उसके मोबाइल पर दोस्त, रिश्तेदारों के call /msg से ज्यादा प्रमोशनल call /msg की संख्या हो गयी | समझदार होने की जगह वो और न समझ बनती गयी , खुद को समझाने के लिए खुद से झूठ बोलती गयी |
चेहरे पर अपने खुश दिखने का नक़ाब पहनती गयी, घुट घुट कर ज़िंदगी जीती रही |

जब असल में हुई उसको ,उसकी पारवाह करने वाले से मोहब्बत तो उससे भी वो नफ़रत करती गयी , न समझी में हुई गलती को मोहब्बत नाम देकर वो भागती रही |
दिल ही दिल में मोहब्बत कर सामने से उसको ठुकराती गयी , वो बताता रहा , समझाता रहा वो एक कान से सुनकर दूसरे कान से निकलती गयी |
खुद गलती कर उसको ज़िम्मेदार ठहराती गयी , वो बेपरवाह सी मोहब्बत करता रहा, वो समझ कर भी न समझ बनती रही |
मोहब्बत पहले की तरह आज भी बेपरवाह सी है मेरी , और आगे भी रहेंगी |
आप से ही की है और आपसे से ही रहेगी ||
आपके आने का वक़्त कितना भी लम्बा क्यों न हो |
मेरी आंखे सिर्फ़ आपके दीदार के लिए इंतज़ार करेंगी ||
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