Monday, 22 September 2025


उलझने ...!







ये उलझी सी ज़िंदगी कभी सुलझी ही नहीं।  बदलने की क़ोशिश तो बहुत की पर बदली नहीं।।
रूकती रही, चलती रही , बस इसी कश्मक़श में ज़िंदगी आगे बढ़ती रही।। 







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