Monday, 22 September 2025


उलझने ...!







ये उलझी सी ज़िंदगी कभी सुलझी ही नहीं।  बदलने की क़ोशिश तो बहुत की पर बदली नहीं।।
रूकती रही, चलती रही , बस इसी कश्मक़श में ज़िंदगी आगे बढ़ती रही।। 







Monday, 18 August 2025

किस्मत की ये लकीरें.....!












समय दर समय निकलता रहा ,दिन पर दिन यूँ ही गुज़रता रहा। 
वो अपने अंदाज़ में ज़िंदगी जीते रहे, वो अपने अंदाज़ में ज़िंदगी जीते रहे।। 
हम ता उम्र उनका ही इंतज़ार करते रहे। 

ऐ दोस्त

मुझे पता था, इश्क़ में हमेशा अधूरी थी लकीरें, 
सोचा था, शायद बदलूंगा मैं अपनी किस्मत से ये लकीरें।