ज़िंदगी से कश्मक़श .......!
अर्ज़ है ........!
सोच में एक ख्याल आया था...... कि जैसा चाहा था, वो कभी मुझे मिल न सका........!
हर बार चीजें बदलती रही......हालातों से मैं लड़ता रहा,
न मुझे कोई समझ सका और न मैं अपनी चीजें समझा सका.......!
ज़िंदगी की दौड़......!
कुछ कहना था ,कुछ सुनना था।
कुछ बताना था, कुछ समझना था।
.....ऐ ज़िंदगी.....
ज़िंदगी की दौड़ में, उसे अपने साथ आगे बढ़ाना था।
न समझ इश्क़...!
बताया भी बहुत कुछ है, पर कोई समझा नहीं।
......ऐ मेरी जान......
कहने को तो इश्क़ है, पर कभी बताया नहीं।