मेरी क़ोशिशे.....!
मैं क़ोशिशे करता रहता हूँ उनको पाने की, वो आज़माइशे करते रहते है मुझसे दूर जानें की।
कभी वक़्त मिले मेरे बारे में सोंचने का,
.... मेरी जान....
तो बस इतना ही याद ऱखना कोई था, जो क़ोशिश करता रहता था सिर्फ़ मुझें समझनें की।।
फ़र्क नहीं पड़ता.....!
उनको फ़र्क नहीं पड़ता मेरे होने या न होने से,
एक और साल बीत जाएगा एक तरफ़ा इश्क़ करते - करते,
उन्हें क्या ही फ़र्क पड़ेगा मुझे खोने से,
इसलिए ख़ुद से कुछ वायदे कर रहा हूँ ,ये साल ख़त्म होते होते।
क़िस्मत का अफ़साना...!
मैं बसाना चाहता हूँ अपनी ज़िंदगी में तुझे, हमेशा चपकाये रखना चाहता हूँ अपनी बाँहों में तुझे,
ये मेरी हसरतें पूरी होंगी भी या नहीं, ये पता नहीं मुझे,
कभी क़िस्मत साथ नहीं होती मेरे और कभी तुम पास नहीं होती मेरे।
इश्क़ का फूल ....!
हम वो फूल है जो अपनों की ख़ुशी के लिए ख़ुद को मुरझाना जानते हैं।
हम तो......, वो फूल है जो अपनों की ख़ुशी के लिए ख़ुद को मुरझाना जानते हैं,
और इश्क़ में तो ....मेरी जान... टूट कर बिखरना जानते हैं।।