कम्बख़त इश्क़.......!
वो बेरुखी की चादर ओढ़े बैठें रहे, हम इश्क़ में बाहें खोले बैठें रहे।
वो बेरुखी की चादर ओढ़े बैठें रहे, हम इश्क़ में बाहें खोले बैठें रहे।।
.......ऐ दोस्त .......
वो हाँ ना, हाँ ना, करते रहे। वो.... हाँ ना, हाँ ना, करते रहे,
हम भी कम्बख़त उनके इश्क़ में थे।
तो हम भी उनके पीछें - पीछें चलते रहे।।